Saturday, July 10, 2021

घमौरियां / अलाइयाँ / मरोड़ी


गर्मियों के मौसम में किसी भी कारण से स्वेदावरोध ( पसीना रुक जाना ) होने से घमौरियों का होना एक आम समस्या है । 


 लक्षण 

 त्वचा में दाने, लालिमा , खुजली , चुभन , जलन इत्यादि लक्षणों के कारण ये एक अत्यंत कष्टदायक स्थिति होती है जिससे बचाव किया जा सकता है ।


बड़ो के मुकाबले बच्चों को यह समस्या ज़्यादा होती है क्योंकि बच्चो की त्वचा में स्वेद ग्रंथियां अभी विकसित हो रही होती है इसलिए गर्मी से जल्दी और ज़्यादा प्रभावित होती हैं ।


 घमौरियों से बचाव के लिए -

1. गर्मी से बचें । शीतल स्थान पर रहें । यथा संभव कूलर या ए सी का प्रयोग करें ।


2. त्वचा के तापमान को कम रखने और पसीने को बार बार साफ करने के लिए दिन में 2-3 बार स्नान करें


3. हल्के, ढीले और सूती कपड़े पहनें । कसे हुए, सिंथेटिक कपड़ों से बचें ।


4. शीत वीर्य द्रव्यों का, तरल पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करें ।


5. चंदन, मुल्तानी मिट्टी, इत्यादि का त्वचा पर लेप करना चाहिए ।


6. त्वचा को खुजाने से, खरोंचने से बचना चाहिए त्वचा को रगड़ न लगे इस बात का ध्यान रखें ।


7. हल्दी, त्रिफला, मुल्तानी मिट्टी, गुलाब जल इत्यादि के उद्वर्तन ( उबटन ) द्वारा मृत त्वचा को साफ करके स्वेदावरोध को समाप्त करना चाहिए ।


8. तीक्ष्ण द्रव्यों के सेवन और प्रयोग से बचना चाहिए ।


9. व्यसन से दूर रहना चाहिए ।


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Friday, July 9, 2021

मूत्र का रंग और आपका स्वास्थ्य



एक मध्यमवर्गीय स्वस्थ व्यक्ति सामान्यतः अपने स्वास्थ्य की ज़्यादा चिंता नहीं करता क्योंकि उसकी सामान्य सी सोच होती है कि जब कोई दिक्कत आएगी तो देखेंगे ।

 कुछ व्यक्ति जो जीवन का महत्व समझते हैं, रोगों के कष्टों, बड़े बड़े अस्पतालों के धक्कों और बड़े बड़े विलों के आर्थिक बोझ से बचना चाहते हैं वे अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहते हैं और समय समय पर अपनी जांच करवाते रहते हैं । 

किंतु वह व्यक्ति जो अपनी व्यस्तता, ध्यानाभाव, आर्थिक कारणों के चलते या किसी भी अन्य ऐसे ही कारणों के चलते अपनी जांच नही करवा पाता तो क्या कोई तरीका है कि वह अपनी दैनिक क्रियाओं के माध्यम से किसी भी रोग को समय से पहले पकड़ पाए और समय पर सही कदम उठाकर, अपनी दिनचर्या, ऋतुचर्या अथवा खान पान में परिवर्तन करके स्वयं को स्वस्थ बनाए रख सके  

हृदय , मस्तिष्क और गुर्दे जिन्हें आयुर्वेद ने त्रिमर्म ( अर्थात शरीर के ऐसे तीन कोमल और अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान जिन पर जीवन टिका हुआ है ) की संज्ञा दी है । 

यदि हम इन तीनों अंगों पर ध्यान दें तो अनेक गंभीर रोगों को समय रहते पहचान सकते हैं और आने वाले कष्ट, आर्थिक बोझ, तनाव इत्यादि से बच सकते हैं ।

आज का हमारा विषय अथवा केंद्र बिंदु हमारे दोनों गुर्दे हैं । हमारे शरीर में क्या क्या घटित हो रहा है । क्या टूट रहा है । क्या बन रहा है । हमारी दिनचर्या, ऋतुचर्या, हमारा खानपान संतुलित है या नहीं, व्यवस्थित है या नहीं इन सबका हमारे दोनों गुर्दों पर बहुत ही ज़्यादा प्रभाव पड़ता है । गुर्दों की अनदेखी बहुत भारी पड़ सकती है क्योंकि गुर्दों के अधिकतर रोग असाध्य की श्रेणी में आते हैं । ये रोग बहुत ज़्यादा कष्ट और आर्थिक बोझ देते हैं । 

गुर्दों द्वारा बनाये जाने वाले मूत्र के रंग, उसकी गंध, मात्रा, प्रवृति इत्यादि पर ध्यान देकर हम समय रहते गुर्दों के रोगों का पूर्वानुमान लगा सकते हैं और स्वस्थ बने रह सकते हैं ।

 क्या आपने आज सुबह अपने मूत्र के रंग का ध्यान किया ? 

आज सुबह आपके मूत्र का रंग ऊपर चित्र में दिए गए 1-8 अंक तक के अंकों में से किस अंक के आगे लिखे रंग से मेल खाता है 

वह अंक आप हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर अथवा 9540 252 252 पर भेजिये और अपने स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त कीजिये