Sunday, December 24, 2017


आरोग्य सूत्र

  👉  शीतदंश ( Chilblains )  👈

 🍀 सर्दियों में हाथ पांव की उंगलियों का सूजना 🍀

सामान्यतः ऐसा देखने में आता है कि सर्दियों के मौसम में हम में से कुछ के हाथ और पांव की उंगलियों में लालिमा एवं सूजन आ जाती है । सामान्यतः यह स्थिति कष्टदायक नहीं होती है किंतु कभी-कभी लापरवाही के कारण यह  स्थिति बिगड़कर इतनी पीड़ादायक हो जाती है कि हम अपने दिन के कामकाज कर पाने में भी असमर्थ हो जाते हैं इसलिए सही समय पर सही चिकित्सा करके हम  इस  क्षुद्र रोग को गंभीर रोग में परिवर्तित होने से रोक सकते हैं ।


👉   लक्षण : 

1. हाथ अथवा पांव की अंगुलियों में सरसराहट, खुजली, सुई चुभने जैसी अनुभूति एवं सूजन का होना ।

2. चमड़ी के स्वाभाविक रंग में परिवर्तन होना । प्रभावित स्थान पर चमड़ी का रंग लाल अथवा नीला हो जाना ।

3. प्रभावित स्थान पर चमड़ी में जलन अथवा दर्द का होना ।

4. बढ़ी हुई स्थिति में चमड़ी पर छाले अथवा जख्म हो जाना ।



👉   कारण :

सामान्यतः हमारे शरीर के प्रत्येक हिस्से तक ऑक्सीजन एवं पोषक तत्वो  का पहुंचना एवं वहां उत्पन्न मल का निर्हरण अत्यंत आवश्यक है । यदि शरीर के किसी भाग में खून का दौरा कम हो जाता है तो वहां पर ऑक्सीजन एवं पोषक तत्वों का भी अभाव होने लगता है तथा वहां पर मल (Waste Products) एवं विजातीय द्रव्यों ( Toxins ) की अधिकता हो जाती है, जिसके कारण वहां स्थित वात, पित्त एवं कफ आदि दोषों का संतुलन बिगड़ जाता है परिणामस्वरूप शरीर का वह भाग असामान्य  व्यवहार करने लगता है ।

सर्दी के मौसम में भी ऐसा ही कुछ होता है । अत्यधिक सर्दी के कारण हमारे हाथ और पांव की  खून की नसों के सिकुड़ जाने के कारण  हाथ और पांव में खून का दौरा कुछ कम हो जाता है, जिसके कारण हाथ और पांव की चमड़ी को ऑक्सीजन एवं पोषक तत्वों की कमी हो जाती है । यदि लंबे समय तक हमारे हाथ और पांव अत्यधिक सर्दी के संपर्क में रहते हैं तो वहां पर खून का दौरा बिल्कुल बंद हो जाता है ( जिसे सामान्य भाषा में खून का जम जाना भी कहा जाता है )। ऑक्सीजन एवं पोषक तत्वों के अभाव में और मल एवं विजातीय द्रव्यों के निर्हरण न हो पाने के प्रतिक्रिया स्वरुप वातादि दोष कुपित होकर हमारे हाथ और पांव की चमड़ी में खुजली एवं सूजन उत्पन्न कर देते हैं तथा चमड़ी के स्वाभाविक रंग में परिवर्तन हो जाता है ।


सामान्यतः यह दिक्कत किसी को भी हो सकती है किंतु -

1. कमजोर प्रकृति वाले

2. कुपोषण के शिकार

3. गंभीर रोगों से ग्रस्त

4. व्यस्क एवं  बुजुर्ग

5. कसे हुए कपड़े  पहनने वाले

6. मौसम के अनुसार आचरण ना करने वाले

7. लंबे समय तक अत्यधिक सर्दी के संपर्क में रहकर काम करने  वाले

8. सर्दी से शरीर का भली प्रकार से बचाव ना करने वाले

व्यक्तियों को यह दिक्कत अक्सर घेर लेती है ।


👉   बचाव :

1. जहां तक हो सके ठंड से बचें ।

2. शरीर को सही प्रकार से ढक कर रखें ।

3. शरीर के अंगों  (विशेषतौर पर हाथ एवं पांव)  को गर्म रखें ।

4. पौष्टिक आहार का सेवन करें ।

5. स्वास्थ्य वर्धक रसायन योगों का सेवन करें ।

6. सम्पूर्ण शरीर पर अभ्यंग ( Body Massage with Medicated Oils ) करें ।

7. शीत ऋतुचर्या का पालन करें ।



👉   चिकित्सा :

सर्दी के मौसम में हाथों एवं पांवों की उंगलियों में सूजन का आ जाना एक सामान्य दिक्कत है, इसके लिए किसी विशेष चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती है किंतु यदि समय पर ध्यान ना दिया जाए तो यह समस्या गंभीर रूप धारण कर सकती हैं, इसलिए समय रहते इसकी चिकित्सा हमें अनेक कष्टों से बचा सकती है ।

1. हाथों एवं पांवों को दूर से अथवा अप्रत्यक्ष रुप से  गर्मी देते हुए पुनः धीरे धीरे गरम करें ।

2. हाथ एवं पांवों को गर्म करते समय होने वाली सरसराहट के समय खुजली ना करें ।

3. सरसराहट एवं खुजली के लिए सिद्ध तेल / घृत को गुनगुना करके हल्के हाथ से प्रभावित स्थान पर लगाएं ( रगड़ कर मालिश न करें )।

4. हाथों एवं पावों को गरम करने के तुरंत उपरांत उन्हें सर्दी के संपर्क में न आने दें, उन्हें गर्म जुराब एवं दस्तानों अथवा  गर्म वस्त्रों से ढक कर रखें ।

5. सात्म्य एवं पोष्टिक आहार का सेवन करें ।

6. स्वास्थ्यवर्धक रसायनं योगों का सेवन करें ।

7. फल एवं हरी सब्जियों का सेवन करें ।

8. गंभीर अथवा बढ़ी हुई  स्थिति मे चिकित्सक से मिलकर वात-पित्त शामक आहार, विहार एवं औषध व्यवस्था द्वारा उपचार कराए ।

9. किसी भी प्रकार के नशे ( बीड़ी, पान, तम्बाकू, गुटखा, मद्यपान ) से बचें ।

10. शीत ऋतु में निर्दिष्ट दिनचर्या एवं ऋतुचर्या का पालन करें ।

👉   अधिक जानकारी के लिए अपने चिकित्सक अथवा हमसे संपर्क करें   👈


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निदान परिवर्जन =  परहेज़ ही सबसे पहला और सबसे अच्छा इलाज़ है ।
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डॉ घनश्याम वत्स
           MD (Ayu)
Assistant Professor,
Department of Swasthvritta
(Preventive Medicine), GSAMC
#9540 464 464
drvatsa@gmail.com


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आयुर्वेद जागरूकता हेतु इदं राष्ट्राय न्यास द्वारा जनहित में जारी । आपकी प्रतिक्रियाओं, सुझावों एवं प्रश्नों का स्वागत है ।
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 🍀 च्यवनप्राश सेवन विधि 🍀

च्यवनप्राश आयुर्वेदोक्त एक रसायन योग है जो  बल एवं दीर्घायु प्रदान करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाकर रोगों के नाश में सहायक होता है । यदि सही प्रकार ( कुटिप्रावेशिक विधि ) से सेवन किया जाए तो च्यवनप्राश व्यक्ति को पुनः युवा बना सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है ।

किन्तु आजकल की भाग दौड़ के समय में कुटिप्रावेशिक विधि से इसका सेवन काफी कठिन है या यह भी कह सकते हैं कि लगभग असंभव सा है । इसलिए हम आयुर्वेदोक्त वातातपिक विधि से भी इसका सेवन कर सकते हैं ।

सर्दियों में हम सब विशेष रूप से इसका सेवन करते हैं । किन्तु अक्सर हमे पूरा लाभ नहीं मिलता जिसका कारण गलत विधि से इसका सेवन है ।



सही सेवन विधि

1. च्यवनप्राश के सेवन से पहले हमें किसी आयुर्वेद चिकित्सक से मिलकर अपने शरीर के सभी स्रोतस ( channels) की शुद्धि कर लेनी चाहिए । क्योंकि जिस प्रकार गंदे कपडे पर यदि रंग चढ़ाया जाए तो रंग सही नहीं चढ़ता उसी प्रकार बिना स्रोतस शुद्धि के रसायनं सेवन से पूर्ण लाभ नहीं होता ।

2. च्यवनप्राश का सेवन सदैव खालीपेट करना चाहिए एवं इसके तुरंत बाद कुछ खाना नहीं चाहिए ।

3. च्यवनप्राश हमेशा अपनी जठराग्नि (हज़म करने की ताकत ) के हिसाब से ही खाना चाहिए ।

4. सुबह नाश्ते के स्थान पर हमें अपनी जठराग्नि के बल के अनुसार ( बच्चों को 1/2 से 1 चम्मच, बड़ों को 2 - 4 चम्मच ) च्यवनप्राश का सेवन करना चाहिए ।

5. जठराग्नि के बल का अनुमान हम इस प्रकार लगा सकते हैं कि हमे इतना च्यवनप्राश खाना चाहिए की यदि हमने सुबह नाश्ते के समय इसका सेवन किया है तो दोपहर के समय तक वह अच्छी प्रकार पच जाए एवं हमें ठीक प्रकार से पहले की ही भांति खुल कर भूख लगे ।

6. जब हमें भूख लगे तो उस समय हमें चावल+दूध+गाय का देसी घी से मिलकर बनाया हुआ भोजन करना चाहिए ।

7. भोजन भी जठराग्नि के बल के हिसाब से ही लेना चाहिए । क्योंकि हाज़मे से ज़्यादा भोजन भी नुक्सान देय होता है ।

8. च्यवनप्राश सेवन काल में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।

9. सात्विक आहार एवं फलों का सेवन करना चाहिए ।

10. निर्दिष्ट दिनचर्या एवं ऋतुचर्या का पालन करना चाहिए ।

जितना ज्यादा हम उपरोक्त सेवन विधि का प्रयोग करेंगे च्यवनप्राश उतने ज़्यादा सकारात्मक प्रभाव देगा ।



ये बिलकुल न करें

1. चाय या कॉफी के साथ च्यवनप्राश सेवन ।

2. खाना खाने के बाद च्यवनप्राश सेवन ।

3. च्यवनप्राश सेवन काल में तला मिर्च मसाले वाला भोजन ।

4. असात्म्य भोजन ।

5. ठंडा एवं बासी भोजन ।

6. दूषित भोजन ।

7. किसी भी प्रकार का नशा ( बीड़ी, पान , तंबाकू, गुटका, मद्यपान इत्यादि) सेवन ।

8. दिन में सोना ।



विशेष -

👉 शुगर के रोगी केवल शुगर फ्री च्यवनप्राश का ही सेवन करें ।

👉 च्यवनप्राश का सेवन  सभी आयुवर्ग ( बच्चों, बड़ों, महिलायें, वृद्ध, स्वस्थ एवं रोगी ) के व्यक्तियों के लिए उत्तम है ।

👉 च्यवनप्राश का सेवन सभी के लिए पूर्णतः सुरक्षित है किंतु फिर भी गंभीर रोगों से ग्रस्त रोगी चिकित्सक की देखरेख में ही इसका सेवन करें ।



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निदान परिवर्जन =  परहेज़ ही सबसे पहला और सबसे अच्छा इलाज़ है
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डॉ घनश्याम वत्स
           MD (Ayu)
Assistant Professor,
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